भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा- 36
(ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, जो विकृत्त चित्त,आदि हो)
जब कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्त-विकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।
उदाहरण- (क). राजेश, विकृत्त चित्त व्यक्ति, रमेश को जान से मारने का प्रयत्न करता है। राजेश किसी अपराध का दोषी नहीं है। किन्तु रमेश को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह राजेश के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता।
(ख). राम रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है। मोहन, सद्भावपूर्वक राम को गृह-भेदक समझकर, राम पर आक्रमण करता है। यहां मोहन इस भ्रम के अधीन राम पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता है किन्तु राम, मोहन के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब मोहन उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।
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(IPC) की धारा 98 को (BNS) की धारा 36 में बदल दिया गया है। |